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शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

नंदी

 नंदी को पता नहीं उसकी मां उसको पैदा कर के क्यों चली गई ट्रेन में बैठ कर। उसको यह भी नहीं पता चला कि ट्रेन किस दिशा में गई। पता चलता तो आज वो मुक्त होता । वो मुक्त होता और व्यस्त होता उसके अपनों के द्वारा संवारी गई ज़िन्दगी में । 

उसकी मुस्कान में बोरिंग से निकलते हुए पानी की इतनी तरावट है। बड़ों के भार उसके मजबूत कंधों पर सवाल हो कर उसे उदास कर देते हैं। शाम को भौरियों ऐसे पाओं लेकर हांथी की तरह चलता है। उसकी खानगी को लेकर अक्सर लोग हंसते हैं। सुबह ग्यारह बजे वो कहता है हां खाना खा लिया। समय पूछने पर बीती शाम उसकी आंखों में तैरती है। वो गुल्लक में पैसे जमा कर रहा है। दिवाली में संभवतः उसे नए कपड़े खरीदना नसीब हो। वो  छह भाइयों का कथित भाई है। गालियां , मार और बुरा भला उसको बहुत अखरता है। वो लड़ता है , गुस्साया रहता है। सब के काम करता है। 

 वो खाली समय में सायकिल चलाता है। पास के कुत्तों के पिल्लों से खेलता है। उनका ख्याल रखता है। गुल्लक को बार बार उठाकर देखता है। वो जल्द ही बड़ा होना चाहता है। दिल्ली जाकर किसी ढाबे पर या किसी फैक्ट्री में काम करना चाहता है। वो मजबूत होकर जगह बदलना चाहता है। उसके दिन पहाड़ से होते हैं। रातें पता नहीं चलती बेहोशी में।  वह जल्द ही मुक्त होना चाहता है।


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