वो कहीं डर के छिपे है
मेरी किस्मत की तरह ...
बात दो बात की हामी
मेरी फितरत ही कहां...
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फिर झुंझलाकर मैने पूछा अपनी खाली जेब से क्या मौज कटेगी जीवन की झूठ और फरेब से जेब ने बोला चुप कर चुरूए भला हुआ कब ऐब से फिर खिसिया कर मैन...
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