वो कहीं डर के छिपे है
मेरी किस्मत की तरह ...
बात दो बात की हामी
मेरी फितरत ही कहां...
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निकल जाओ मेरे घर से बाहर . अब तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं है . तुम सर पर सवार होने लगी हो . अपनी औकात भूलने लगी हो . ज़रा सा गले क्या लगा लिय...
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