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शनिवार, 12 सितंबर 2020

शायद मैं न रहूं !





होना संसार की

सबसे छल शै  है ।


मैं जब नहीं था

और जब मैं हूं 

या मैं था

और अब नहीं हूं

रहूंगा या नहीं 

यकीनन नहीं रहूंगा ...


कौन आभास कराता है 

मेरे होने न होने को

रोज़ पैदा होता हुआ मैं

या मेरे पहले

पैदा करने वाले मुझे ?


या फिर 

रेंगती ज़िन्दगी में 

होने की बाँट जोहते  

बनते बिगड़ते समीकरण  

घटनाएँ , परिद्रश्य.... 


थक चला हूँ

अपने होने का प्रमाण देते देते  

कोई हक नहीं

मैं , मुझे मेरी जागीर समझूँ  

बेदखली से डरूं 

मैं रहूँ 

शायद मैं न रहूँ ....    


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