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मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021

काठी का घोड़ा !

बिट्टी का चेहरा दमका
दाँतों की अग्रिम पंक्तियाँ चमकी
आँखों से मासूमियत छलकी
कमर पर हाँथ धरे उठी
लमकी कच्ची पगडण्डी पर !

सोची , माँ खुश होगी
लकड़ी के गट्ठर में
भाई से कुछ ज्यादा 
हिम्मत बँधी
सर से पाँव तक
जिम्मेदारी का असर
चूल्हे की रोटियों में आया।

स्कूल जाते बच्चों से
उपजी बिट्टी की उदासी
चूल्हे में खप जाती
इक्कम दुक्कम
गेंद ताड़ी, लबबा लोई
पिरोड़ की मिट्टी से
बनते बिगड़ते घर
बिट्टी का ईंधन होते।


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