तुम्हारी किताब का अक्षर
प्रेम में भीगा हुआ
तर बतर आंखों में
तैरता मासूम मुलायम
ख़्वाब हो जाता बादल
आकाश में उड़ता
पैर पसारे एक साँझ
जा बैठता है
रोओं के पास
पढ़ने की तीव्र ललक
पीछे खींचती पढ़ने से
मन व्याकुल छटपटाता
भागता अक्षरों के पीछे
मायनों की तलाश में
उल्टे सीधे रास्तों का डर जाता
सींचता लम्हों को
बहने की प्रेरक कहानियों में
जीवन की पहली किताब
पहला अक्षर
नई किताब का नशा
चढ़ता सिर जाकर ।
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