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गुरुवार, 6 मार्च 2014

एक ग्लास चाय !

"एक कप चाय"  हमारे दैनिक जीवन  का अभिन्न हिस्सा जरुर बन गया है, लेकिन "एक ग्लास चाय" जिसने भी पी ली  उसे इस आदत पर अफ़सोस के साथ बदलने कि इक्छा भी होती होगी,यहाँ एक ग्लास चाय से मतलब कांच कि ग्लास(नमो चाय) से बिलकुल नहीं है,स्टील कि ग्लास भर चाय,चूल्हे पर पकी शुद्ध दूध से बनी सोंधी खुश्बू और स्वाद वाली चाय किसी ब्रांडेड चाय पत्ती  कि मोहताज नहीं होती,चाय पत्ती  चाहे मोहिनी हो या डंकन कि.….आज लकनऊ से करीब 10 किलोमीटर दूर एक गाँव में किसी मुद्दे पर रिपोर्टिंग के लिए जाना हुआ.…खाँटी देशी आओ भगत,जान न पहचान के बावजूद  भी  बाहर दालान से घर कि देहरी लांघने में थोडा ठिठका लेकिन  चौके के पास गर्मागरम "एक गिलास चाय" से ऐसा लगा आदमी आदमी को क्या देगा जो भी देगा …। लचीली(कुछ बनावटी सी ) आवाज में अम्मा,चाची,दादी और दाऊ के सम्बोधन से मैंने उनको अपना बनाने कि कोशिश की लेकिन यह भूल गया कि वह "एक गिलास चाय" चेहरा,कपडे,जाती पैसा देख कर नहीं आती है  ,वह चाय तो समाज के सबसे निचले तबके कि जर्जर रसोई से आती है जहाँ इंसानियत का  चूल्हा जलता रहता है विकास कि तेज़ हवाओं से बचकर।

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