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शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

पिछड़ते कदम दौड़ने का अभ्यास करते हैं 

झूठ और फरेब कि गठरी लिए 
चका चौंध रास्तों पर 
अंधी दौड़ में शामिल 
सैकड़ों लोग 
मुह चिढ़ाते हुए 
सर्र सर्र निकल जाते हैं 
मेरे करीब से 

हँसते मुस्कराते चेहरे 
दम्भ से भरे 
नाजायज को जायज 
में लपेटे 
इंसानियत को प्रतिस्पर्धा 
से रौंदते 
ललकारते हैं 
मेरे सामर्थ्य को 

आलिशान चहारदिवारों 
लक दक गाड़ियों
बेश कीमती आभूषणो 
से पटे 
भविष्य कि चर्चाओं के बीच 
संरक्षित जीवन 
उजाड़ते हैं 
मेरे वर्त्तमान को 

जीवन कि इस 
अंधी दौड़ में 
थके,हारे पिछड़ते 
मेरे कदम 
दौड़ने का करते हैं 
अभ्यास 
हर रात सोने से पहले 
                                                                       बिस्तर पर !…………  प्रभात सिंह 

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