पिछड़ते कदम दौड़ने का अभ्यास करते हैं
झूठ और फरेब कि गठरी लिए
चका चौंध रास्तों पर
अंधी दौड़ में शामिल
सैकड़ों लोग
मुह चिढ़ाते हुए
सर्र सर्र निकल जाते हैं
मेरे करीब से
हँसते मुस्कराते चेहरे
दम्भ से भरे
नाजायज को जायज
में लपेटे
इंसानियत को प्रतिस्पर्धा
से रौंदते
ललकारते हैं
मेरे सामर्थ्य को
आलिशान चहारदिवारों
लक दक गाड़ियों
बेश कीमती आभूषणो
से पटे
भविष्य कि चर्चाओं के बीच
संरक्षित जीवन
उजाड़ते हैं
मेरे वर्त्तमान को
जीवन कि इस
अंधी दौड़ में
थके,हारे पिछड़ते
मेरे कदम
दौड़ने का करते हैं
अभ्यास
हर रात सोने से पहले
बिस्तर पर !………… प्रभात सिंह
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