बहुत बाद
बड़ी देर
ठहर कर
इक बूंद
टप्प से
गिरी राख पर
बादल के दल
उमड़ घुमड़
धरते पांव
ठहर ठहर
मन मीत
की बात
कहे न कहे
मन प्रीत
से ज्योति
जलाए पड़े ।
कोई है जो इन दिनों तितलियों के भेष में उड़ाती रंग पंखों से कोई है जो इन दिनों बारिशों के देश में भिगाती अंग फाहों से कोई है जो इन दिनों ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें