निर्जन तपती धरती पर
ज ब कोई बीज पड़ा होगा
नमी ने सहेजा होगाहवाओं ने सहलाया होगा
धूप ने सिखलाया होगा लड़ना
मिट्टी ने डाली होगी
बीज में संवेदना
उर्वरक बन प्रेम का
अंकुरण हुआ होगा
ओस की बूंदों ने
लिखी होगी पाती
बरसे होंगे काले
घने बादल
धरती मुस्काई होगी
मर्मस्पर्शी स्पंदन
कहता होगा
प्रकृति का अभिनंदन !
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