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मंगलवार, 14 नवंबर 2017



फीजी मूल के कुछ गुमशुदा भारतीय !
अजोध्या में कुछ डेढ़ सौ लोग ऑस्ट्रेलिया के पास बसे देश "फीजी" मूल के पिछले 10 दिनों से आयें हैं। जिनमें से ज्यादातर लोग अब ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। फीजी और ऑस्ट्रेलिया का शाब्दिक अर्थ नही मालूम। और न वहाँ रह रहे भारतीय एन आर आई की संख्या। फिर भी डेढ़ सौ लोग दूसरे मुल्क से यहाँ 10 दिनों से केवल हवन करने आये हैं। वो दिखते भारतीय हैं, हिन्दी समझने समझाने भर की, अंग्रेज़ी सलैंग वाली। वो फॉरेनर्स हैं फिर भी राम, रामायण अयोध्या पर फ़िदा हैं।
अभी पिछले ही महीने अमेरिका से कुछ दो एक भारतीय एन आर आई यहाँ किसी बड़े आयोजन के लिए आये थे। आयोजन में एन आर आई समेत 2000 लोग आने को थे। एक बड़े संगठन और अमेरिका के हिन्दू संगठन के लोगों ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया। पर मुश्किल से 100 लोग ही रहे उसमें से केवल दो एन आर आई।
अमेरिका के एन आर आई भारतीयों का कार्यक्रम फेल हो गया। भारतीय नागरिकता न होने के बावजूद फीजी वाला कार्यक्रम पूरे शानोशौकत से रहा। 10 दिन से चल रहे कार्यक्रम के तहत सबने बाकायदा सरयू में स्नान किया, मंदिरों में दर्शन किए और दिन में 3 बार 51 कुंडीय हवन किया। आखीर में दान धर्म का दौर भी चला। अखबारों में एन आर आई बता के कवरेज भी खूब हुई।
पर दोनों ही कार्यक्रमों में अमेरिका वालों के कार्यक्रम में ज्यादा पैसा खर्च हुआ था। भव्यता का आभासी सौंदर्य था। फिर भी वह असफल रहा। फीजी वालों ने बताया कि उनको राम पर आस्था है। नागरिकता न होने की वजह से उनके पास भारतीयता का सर्टिफिकेट नही है। पर वो भारतीयों और अप्रवासी भारतीयों से ज्यादा राम और राम की अयोध्या को याद करते हैं। उन्होंने बताया कि उनको नही पता ब्रिटिश राज के दौरान उनके पूर्वज किस जगह से किस जहाज पर अवैधानिक तौर से यहाँ लाए गए थे। उन्हें ये भी नही मालूम वो बिहार के हैं या दक्षिण के। उनकी पीढ़ियों से केवल अंग्रेज़ी दौर में जहाज में ठूंस कर फीजी आने के किस्से आये हैं। उसके बाद न सरकारों ने उनकी सुध ली और न ही वहाँ का आदमी ही सरकार से हिंदुस्तानी होने का अधिकार ले पाया। वो जब कुछ वर्षों पहले पहली बार बार भारत आ रहे थे। तो उन्हें कहा गया था भारत में सावधान रहना। वहाँ लूट होती है, छिनैती होती है, छेड़ छाड़ होती है, वहाँ आस्था के नाम पर ठगी होती है, कुछ भी हो सकता है वहाँ। फिर भी वो आए। और हर साल आने का प्रयास करते हैं। वो हर महीने वहाँ से धन भेजते हैं, यहाँ लगातार रामायण चलवाने का। उनके लिये बने आश्रम में पिछले 27 साल से रामायण का पाठ हो रहा है। उनकी आत्मा पूरे भारत से सिमट कर राम में आ गयी है। वो महसूस करने आते हैं, यहाँ राम चले होंगे, यहाँ विवाह, यहाँ से शरीर त्यागा होगा। वो हम सब से भारत को प्यार करते हैं।
वो कहते हुए भावुक हो उठते हैं, कि वो जानना चाहते हैं वो भारत के किस हिस्से से हैं, किस शहर या गाँव से हैं। पर शायद उन्हें नही मालूम जब तक उन्हें अपने मूल के होने की खबर नही तब ही तक वो शुद्ध भारतीय हैं। क्यों कि वो भारत को प्रेम करते हैं, उनको राम पर आस्था है, वो भारत की संस्कृति को महसूस करते हैं, रामायण उनके लिए जीवन का आदर्श है। पर यहाँ हम धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं, देश प्रेम का ढोंग रचते हैं, संस्कृति से खिलवाड़ करते हैं । उनमें से कई लोग फीजी आइलैंड से बेहतर भविष्य को स्वरूप देने के लिए अन्य देशों में चले गए हैं। न्यूज़ीलैंड के एक नागरिक अयोध्या चला आया, एक फीजी या भारतीय सी दिखने वाली अधेड़ महिला से 51 कुंडों के हवन को साक्षी मान कर फेरे लिए। उन हवन कुंड की गर्मी से 69 साल के गोरे के चेहरे की नसें धुएं में लाल होकर फटने वाली थीं। पहले से ही फेफड़ों में भरी खांसी का दम पिछले 10 दिनों से हवन कुंड में स्वाहा हो रहा था। उसके हांथों में रची मेहंदी में अंग्रेज़ी के अक्षरों से प्रेम लिखा था। उसके सफेद पैरों में महावर लगी थी। ये हवन उन सब के हिस्से के राम को अपनी ऊष्मा से उनके देश फीजी न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया ले जाएगा।

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