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मंगलवार, 14 नवंबर 2017


ये तैयारी अंधेरे से लड़ने की नही है, ये अंधेरे को पूरे सम्मान के साथ महसूस करने की है। यहाँ अंधेरा उसी सम्मान के साथ मन्दिर प्रांगढ़ में प्रवेश करता है जैसे उजियाले की पहली पह प्रवेश करती है। अयोध्या में एकमात्र रामानुज सम्प्रदाय का भव्य विजय राघव मन्दिर शाम से ही अंधेरे के उत्सव की तैयारी करता है। यहाँ बिजली की व्यवस्था केवल शौचालय और गौशाला में है। बाकी मन्दिर के लगभग 4000 वर्ग फीट, तीन मंजिला परिसर में गर्भ गृह से लेकर 35 कमरों और अन्य जगहों पर लालटेन ही एकमात्र रोशनी का साधन है।
प्रसाद से लेकर भगवान का भोग, श्रद्धालुओं का भोजन अभी भी लकड़ी की आग में पकता है। खाने के लिए रसोईं में बने कुएं के पानी का इस्तेमाल किया जाता है। मन्दिर परिसर में स्थित गौशाला में बने कुएं से गायों के लिए पानी, एक अन्य कुएं से मन्दिर में आए श्रद्धालुओं की प्यास बुझती है। मन्दिर परिसर के मुख्य भाग में अभी भी छत में टँगे पंखे को झला जाता है। मन्दिर में जलने वाले सभी दीपक देशी घी में जलते हैं, यहाँ तक भोजन प्रसाद भोग सब हमेशा से देशी घी में बनते आ रहे हैं। अखण्ड दीपक व अन्य दीपकों से लेकर खाना पकाने में औसतन एक कुंतल प्रति माह घी की खपत होती है। दीपकों के लिए गौशाला में पल रही गायों के दूध से बने घी तथा खाने के लिए कहीं दूर किसी गाँव से आये घी से व्यवस्था होती है। मीठे में चीनी नही बल्कि पीली शक्कर का इस्तेमाल किया जाता है। यहाँ किसी भी लेटने वाली जगह पर गद्दे नही हैं, केवल कंबलों का इस्तेमाल होता है। सर्दी गर्मी चटाई कंबल बस।
पूजन अर्चन, भगवान के स्नान के लिए कोई एक सेवक लगभग 600 मीटर चल के सरयू का जल भर कर सुबह शाम लाता है। ऐसे ही तमाम आधुनिक, अत्याधुनिक व्यवस्थाओं को ठुकराकर मन्दिर, भगवान, साधक, सेवक, श्रद्धालु सब एक सा जीवन साझा करते हैं। ये व्यवस्थाएं पुरातन अवश्य लगती हैं, पर मठों मठाधीशों की चकाचौंध मंडी से इतर ये व्यवस्थाएं दिल में आस्था की अखण्ड लौ जलाए रखती हैं।

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