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गुरुवार, 30 नवंबर 2017


ओ संता देख तो चिट्ठी आयी है !

"ओ संता देख तो... पुजारी जी चिट्ठी लाएं हैं, देख तो जरा कौन डेरा से चिट्ठी आयी है ? तीन दिनन से रोज चिट्ठी आये रही है "
    ये वो जगह है, जहाँ चिट्ठियाँ याद के सन्दूक से निकले काले नीले अक्षरों से भरी नहीं होती। यहाँ चिट्ठियाँ भूख का निवाला बन के आती हैं। चिट्ठी जिस दिन आएगी, उसमें किसी शाम या दोपहर का भरपेट भोज होगा। ये राम की नगरी अजोध्या का वो हिस्सा है, सीता माँ कभी विधवा के रूप में नज़र आएंगी, कभी किसी जंगल में फेंकी हुई 2 महीने की दुधमुंही बच्ची के रूप में तो कभी भरे पूरे घर से वनवास काटने वाली हिम्मत के रूप में। ये माईं- बाड़ा है। यहाँ वो माएँ हैं...जिन्होंने अपने इर्द गिर्द किसी पुरुष प्रधान समाज की दासी बनने से इनकार किया है।
     उन्हें दो चीजों का इंतज़ार रहता है, एक चिट्ठी का और दूसरा अपने भगवान के पास हमेशा हमेशा के लिए जाने का। बाकी उनके पास ढ़ेरों काम हैं, इतना काम कि उन्हें अपनी सुध नही रहती। पर उन्हें उनके हिस्से का वैराग्य हाँसिल नही, जितना एक पुरुष के हिस्से आता है। उनके हिस्से के वैराग्य का दान धर्म भी "चेलाही" के नाम से आता है। कभी चेलाही तो कभी चिट्ठी।

#माईंबाड़ा - 1
#राम_जू_की_अजोध्या

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