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बुधवार, 6 दिसंबर 2017


अपना ईश !

जब समाज सोख लेता है सारे रंग
रह जाता, गेरुआ धवल अशेष
मन, तन के पार इच्छाएं
ढूँढ लाती हैं अपना ईश !


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