घुटन से संवाद
घुटन, बाज भी आओ अब
तुम्हे पता है ?
तुम जब आजाद होती हो
तब मैं घुटनों के बल
तुम्हारा फैलाव देखता हूँ
महसूस करता हूँ तुम्हारे स्नेह को
तुम कैंसर की तरह
भली कोशिकाओं को निगल जाती हो
कमज़ोर पड़ चुकी रक्त वाहनियों में
तुम्हारा तीव्र संचार
और तुम्हारा अट्ठास
गलाता है मुझे
तुम्हारा चक्रव्यूह
समय, से भी नहीं टूटता
दोस्ती की कोई गुंजाईश
नहीं रख छोड़ी तुमने
दुश्मनी की कोई वजह नहीं
बस सांस को चलने देना
तुम्हारी जीत है
घुटन को जीना
मेरी हार !
घुटन, बाज भी आओ अब
तुम्हे पता है ?
तुम जब आजाद होती हो
तब मैं घुटनों के बल
तुम्हारा फैलाव देखता हूँ
महसूस करता हूँ तुम्हारे स्नेह को
तुम कैंसर की तरह
भली कोशिकाओं को निगल जाती हो
कमज़ोर पड़ चुकी रक्त वाहनियों में
तुम्हारा तीव्र संचार
और तुम्हारा अट्ठास
गलाता है मुझे
तुम्हारा चक्रव्यूह
समय, से भी नहीं टूटता
दोस्ती की कोई गुंजाईश
नहीं रख छोड़ी तुमने
दुश्मनी की कोई वजह नहीं
बस सांस को चलने देना
तुम्हारी जीत है
घुटन को जीना
मेरी हार !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें