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शनिवार, 2 सितंबर 2023

लिखना मेरा काम नहीं !

 


मैं जब लिखने की

कोशिश करता हूं 

पढ़ना याद आता है 

कुछ और कदम बढ़ता हूं

तो लिखना याद है 


मैं न लिख पाता हूं 

न पढ़ पाता हूं 

मैं सोचता हूं 

रोजमर्रा में घट रहे जीवन

मरण की घटनाएं 

न मैं जी पाता हूं 

न मर ही पाता हूं 


मैने देखा है 

पढ़ने लिखने वालों को 

एक क्षण में शब्दों में 

उलझते, डूबते और

डूब जाने को 


वो नही रहते , रहते हैं उनके 

शब्द ताबूत में कील ठोंकते

या उफनादी नदियों के 

वेग में उतराते बच निकलते


जो कह दिया गया

वो खारिज़ हो जाता है 

जो रहता है गहरे मन में 

रोज़ मरने को छोड़

अनकही कहानियों की

पीड़ा को सहता हूं 


मैं मरता हूं

पर आत्महत्या नही करता ।

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