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बुधवार, 20 सितंबर 2023

हे ईश्वर !



ज ब तुम्हे छोड़ के जाने को होता हूं 

डर लगता है 

डर लगता है उन लम्हों से

जो तुम्हारे बगैर घटने जा रहे होते हैं 

मैं चुपके से आंख बंद करता हूं 

और कुछ बुदबुदाता हूं 

बुदबुदाने को स्पष्ट बताया नही जा सकता

वो हर पल बदल जाता है 

कभी किसी पल 

अपने प्रिय जनों से 

अलविदा कहते अच्छा नही लगता

उन्हें मालूम होता है 

उनका ईश्वर कौन है 

कैसे श्रृंगार , भेष भूषा में 

एक जगह तथस्त दशकों से 

एक ही ईश और बाकी सब

द्वेष , कलेस की बांट जोहते

मेरा ईश्वर और मैं ईश्वर

की संकरी गलियों से होते हुए 

मैं तुम्हे खोज लेता हूं 

मिलते हो शायद अक्सर

रोज़ ही तुम 

फिर भी डर लगता है ! 


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