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सोमवार, 24 जुलाई 2017

भीगना जरूरी है !
2 July 2017
अलमारी के बीच के खण्ड में पता नही कितनी ही कहानियां जिनमे बारिश, नदी, पहाड़, प्रेम, जीवन, संघर्ष, सहन, याद, स्त्री, पुरुष अलमारी में सूख रही थी। अलमारी के सबसे नीचे खण्ड में रखे अखबारों में पिछले सूखे से जूझते किसान और उनकी आत्महत्याओं से हिली सरकारों की खबरें अक्षरशाही से दबा दी गयी थीं। अलमारी के सबसे ऊपर खण्ड में रखी खुली साबुन, अगरबत्ती, मार्टीन क्वायल, माचिस , नमक, डेली डायरी, टेबल कैलेंडर, कॉर्ड लेस कीबोर्ड माउस, धूल खा रहे थे।
लंबे अरसे से एक 6 फिट का आदमी 4 बाई 8 के कमरे में आता ठहरता तो था, पर उसे अपने ही कमरे की चीज़ें इस्तेमाल करने छूने से डर लगता था। उसे लगता था वो कुछ छुएगा तो वो उसे संभाल नही पायेगा। कहानियां उसे उसके खिलाफ खड़ा कर देंगी। अखबार की खबरें उससे सवाल करेंगी कि फॉलोअप में तुमने क्या किया ? साबुन हाँथ से फिसल जाएगा, अगरबत्ती की खुशबू दम घोंटेगी, माचिस जला सकती है।
कमरे की एक दीवाल के टूटे हुए जोड़ से टिप टिप तेज़ धीमी बारिश की धार अलमारी को भिगो रही है। बाकी रोशनदान से और दरवाज़े की तरफ से आती बारिश की बूंदे मन के भीतर ढेर सारी ऊर्जा बो रही है। भीगना भीगने देना इतना राहत भरा हो सकता है कभी महसूस नही हुआ। भीगने के बाद सवालों ने जवाब ढूंढ लिए हों जैसे। कमरे के भीतर रखी हर निर्जीव वस्तु जीवित हो चली है। सब संवाद में हैं, सूखे और भीगने के बाद के अंतर को साझा कर रही हैं। सब अपनी अपनी भाषा में अपनी जरूरत अपनी अहमियत को चिल्ला चिल्ला के शोर करते थे। अब कमरे के भीतर बाहर बारिश के स्वर हैं, भीगना स्थायी राग है ठीक वैसे ही मन के भीतर बाहर भी।

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