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सोमवार, 24 जुलाई 2017

1 july २०१७ 

अभी सुना कि लखनऊ में पिछले दो घंटे से झमाझम बारिश हो रही है, मेरे 4 बाई 8 के कमरे को बामुश्किल 1 घंटे बारिश झेलने की आदत है। कमरे के भीतर तीन तरफ से मूसलाधार बारिश प्रवेश करती है। 1 घंटे से ऊपर की बारिश कमरे में टपकने लगती है, ठहरने लगती है। यूँ तो कमरे में छत है, एक लंबा सा खिड़की कम रोशनदान, लोहे की सरियों से बना जालीदार दरवाज़ा है, और एक अलमारी है जिसमें कोई अबूझ पतली सी आधा इंची सुरंग है। कमरे की दीवारें तख्त के दो किनारों से सटी हुई हैं। उनपर हाल ही में मकानमालिक द्वारा दिये गए क्वायर और फोम के गद्दे हैं । अलमारी में ढेरों किताबें हैं, अखबार हैं, तैयार कपड़े हैं। जमीन पर फूल झाड़ू है, छोटी टेबल के टॉप से अक्सर ज्यादा वाला सामान नीचे गिर जाता है, जो कि जगह की कमी के चलते उठाया नही जाता।
मैं हरदोई से लखनऊ के बीच की यात्रा में हूँ। हरदोई स्टेशन पर ही पता चला था कि पिछले 2 घंटे से बारिश हो रही है, और लगता है कि अगले कुछ घंटे होगी। फिलहाल 100 किलोमीटर की दूरी के सफर में दोनों तरफ हरे भरे खेत खलियान, पेड़ पौधे ट्रेन के साथ दौड़ रहे हैं। मेरी दिमाग में कमरे के भीतर तैरती भीगती वस्तुएं घूम रही हैं। लखनऊ पहुंचते ही ऑफिस जाऊंगा फिर रात में कमरा मिलेगा। रात में शायद ही कमरे में कोई जगह सूखी मिले। निचोड़ने सुखाने का भी समय नही होगा।
मैं रोमांचित हूँ। रात का बेसब्र इंतज़ार है। हर बारिश ऐसा ही कुछ होता है। दीवालें साल भर सीली रहती हैं। सारे मौसम कमरे में आते हैं। 4 बाई 8 कमरा सुकून का मचान है। मैं उन लेखकों, साहित्यकारों, संपादकों, प्रकाशकों,धर्म उपदेशकों, मित्रो को यकीन दिलाना चाहता हूं कि उनकी रचनाये, पुस्तकें , पत्र और उपहार सारे मौसम देखते हैं 4 बाई 8 के कमरे में सुरक्षित। हालांकि मैने उस कमरे में मैं अपनी सुरक्षा की गारंटी नही ले पाया। पुर सुकून, अपनापन, एकांत और मौसम की गारंटी हमेशा रहती है।

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