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गुरुवार, 3 अगस्त 2017


मैं मिट्टी हूँ

मैं मिट्टी हूँ
ताकती आसमान
तुम ऊंची इमारत हो डर के, असुरक्षित से

मिलने आओगे एक रोज़
पहले की तरह बेफिक्र
पर कुछ अलग रंग में, कठोर, टूटे से

मुझसे लिपट जाओगे
बारिश धुल देगी
मेरे गुमान, तुम्हारे डर

हम बह जाएंगे
रिक्त को भरने।

तस्वीर : गोमती किनारे

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