अहसासों के खारे समंदर में इंसानियत
यह बच्चा 6 दिन का है मात्र, जन्म देते वक्त माँ चल बसी। ये बच्चा यूँ पान की दुकान पर फटी आंखों से किसी कमी को न खोज रहा होता। आज इसकी माँ होती तो अपने सीने से चिपकाए घूमती, लाड़ करती दूध पिलाती। माँ के सामने बच्चा चला जाता तो भी चिपकाए घूमती कई दिनों तक। बच्चे को पान वाले ने रख लिया है। कहता है कि ज़ू में भेजते तो बड़े बंदर इसे परेशान करते। इसलिए उसने रख लिया, यहां बच्चे को बांधने की जरूरत नही पड़ी। वो शांत है बहुत। माओं वाले बच्चों जैसा उद्दंड, चुलबुला नही है। वो मान लेगा उस पान वाले को अपनी माँ। पान वाला दुकान के पास किसी को सिगरेट सुलगाने नही देता, इस नन्हे बच्चे की वजह से। ये इंसानियत के अहसासात इंसानियत से भरोसा उठने नही देते। दूध मुहे बच्चे के सामने माँ का चला जाना...धीरे धीरे घाव भर जाते होंगे बढ़ते वक़्त। पर माँ के सामने बच्चे का चला जाना...?
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