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मंगलवार, 8 नवंबर 2016

एक चाय तुम्हारे साथ, एक तुम्हारे बगैर


चाय पियोगी ? कितने दिन हो गए झगड़ा करते हुए, मैं तुम और तुम मैं करते हुए। न न यहां मत बैठो, वहाँ बैठो मेरे ठीक सामने। हाँ शायद चाय बहाना हो तुमसे ठहर के बात कर लेने का।
 .... भैया दो चाय बनाना। कड़क पत्ति, दूध कम खूब खौला लीजियेगा। अदरक डाल दीजियेगा थोड़ी सी ज्यादा, मैडम के गले में ख़राश रहती है। समय ले लीजियेगा खूब चाय अच्छी बनने तक। दूध की सफेदी मर जाये तब तक खौलाईयेगा। और हाँ चाय कप में नहीं चलेगी। सफ़ाई का तकाज़ा है, हालाँकि बातों की सफाई देते देते थक गएँ हैं हम दोनों ही।
..... वाह रंगत तो चाय की वैसी ही है जैसे तुम्हे पसंद है। है न ? अरे अरे चाय इतनी जल्दी ख़त्म ? चाय इतनी अच्छी लगी कि ख़त्म ! हां याद आया तुम्ही तो कहा करती थीं जो तुम्हें अच्छा लगता है तुम उसे जल्दी ख़त्म कर देती हो। जो तुम्हे अच्छा नहीं लगता उसे तुम हाँथ भी नहीं लगाती।
.....  भैया चाय एक ही दी आपने ?
"हां मैंने सोचा आप दोनों चाय एक साथ थोड़ी न पी लेंगे। एक और लेंगे चाय ? "

.... हाँ, भैया बना दो, वो तो ठण्डी हो गयी, लेकिन चाय वैसी ही बनी थी।
..... इस बार चाय में अदरक ज़्यादा, दूध डाल दीजियेगा ज्यादा, पत्ति रखियेगा। लेकिन चाय थोड़ी सी सफ़ेद रखना।
.....  दो स्वाद जी रहा हूँ मैं आज कल, एक ख्वाब का एक हक़ीक़त का। 

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