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रविवार, 13 नवंबर 2016

इत्ती सी ख़ुशी, इत्ती सी हंसी, इत्ता सा टुकड़ा चाँद का...


जो बात, जो चीज़ हम बड़ों के लिए "इत्ती सी" इत्ता सा..सा.. हो जाता है, वही "इत्ती सी" बच्चों के लिए बहुत सुकून देता है। ओमी के स्कूल बचपन प्ले स्कूल में जब "इत्ती सी ख़ुशी, इत्ती सी हंसी, इत्ता सा टुकड़ा चाँद का" गाने पर ओमी सहित बच्चों ने थिरकना चालू किया, तो आँख भर आई। आँख इस लिए नहीं भर आयी कि अपना बच्चा अब स्कूल फंक्शन में डांस करने लायक हो गया है। आँख इस लिए भर आई, कि हम बड़े ज्यादा की चाह में "इत्ती सी" के मायने भूल जाते हैं। बच्चे बर्फी मूवी के इस गाने के मायने ज़रूर नहीं जानते हैं, लेकिन इत्ती सी को इत्ता सा समझने के लिए परिपक्व हैं। शायद बच्चे इत्ते से को भरपूर जीते हैं, और इत्ते से के टुकड़े को भरपूर जी कर ही इत्ता सा... सा की चाह को ज़ाहिर करते हैं। बच्चे निश्छल इसलिए ही होते हैं क्यों कि उनके अंदर वर्तमान भरपूर जीने की लालसा होती है। हम कितने ही अवसर इत्ता सा..सा की चाह में इत्ते से की रूमानियत को जाने देते हैं। बच्चों को हम उतना ही सिखा पाते हैं जितना हम जानते हैं, लेकिन बच्चे हमें हमारे जानने और न जानने से परे का सीखा जाते हैं। बस हमें उनसे सीखना आना चाहिए, और हमें उनसे सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए। बच्चों ने उतना ही किया जितना उनको रटाया गया था, लेकिन इस छोटी सी उम्र (2 से 4 साल) में उन्होंने जितना जिया, उतना भरपूर जिया। हां भरपूर, भरपूर हमारी समझ की मोहताज़ नहीं होती। भरपूर होने और न होने के नुक्सान फ़ायदे के पीछे के नाटकीय व्यवहार के कारण भरपूर पूर नहीं हो पाता। बच्चे भरपूर जीने के हकदार हैं उनको हमें इस जीने में रोकने का कोई अधिकार नहीं।

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