चाय चिपकी रहती है होंठ पर देर तक
तुम्हारे साथ चाय पीने के बाद पता चला, कि चाय आदत भर नहीं है। तुमको एक तरफ़ा याद करते करते रोज़ की जेहनी और जिस्मानी थकन को मिटाने का माध्यम भी नहीं है चाय। चाय मीठी सी कसक है, जिसे मैं ज़िंदा रखना चाहता हूँ तुम्हारे मर जाने के एक अरसे बाद भी। चाय जितनी मीठी होती है उतनी ही देर तुम्हारी कसक होंठों से चिपकी रहती है। चाय के तुरंत बाद उखड़ी सिगरेट की तलब की वर्षों पुरानी आदत को बुझा देता हूँ बिना जलाये। तुम किसी महारानी की तरह अक्सर चाय के दो घूँट छोड़ दिया करती थीं प्याले में। मैं अब चाय की दो बूँद भी ज़ाया नहीं करना चाहता। यकीन नहीं होगा, मैं चाय अकेले नहीं पीता, एक चाय तुम्हारे नज़र पुराने जर्जर आले में रख देता हूँ, अपनी खौलती हुयी गर्म चाय गटक कर तुम्हारे हिस्से की ठंढी चाय एक सांस में पी जाता हूँ। चाय तुम्हारी ही तरह ख्यालों में रहती है, लेकिन उसकी मिठास चिपकी रहती है होंठों पर देर तक।
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