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बुधवार, 23 नवंबर 2016




पहाड़ से पहाड़ी लड़की की ऊभ

कच्ची पक्की पहाड़ियों पर अक्सर हवा से बातें करती एक पहाड़ी लड़की कि ज़ुबान पर घुमाओ दार रास्तों से ऊभ की बात ने पूरे पहाड़ पर मायूसी बो दी है । झरने, नदी के किनारे पहुँच के उसका एकदम खिलना औरे देर तक मुरझाये बैठे रहना, धूप से बचती उसकी लाल रंग छोड़ती कुम्हलाई त्वचा कुछ अस्वाभाविक सी लगती है। चलते चलते उस लड़की की उँगलियाँ अब रास्तों में पड़ने वाले हरे,लाल,गुलाबी जैसे तमाम रंगों में रंगी खिलते मुरझाते वनस्पतियों का हाल चाल नहीं लेती, वो दबे पाँवों सिकुड़ कर निकल जाती है, वो इतनी मौन तो नहीं थी कभी, कि उसे अब मौसम की चुहुलबाजियां पसंद नहीं। हलकी हलकी ठंढी हवाएँ अब उसके होंठों को नहीं सुखाती हैं। वो अब किसी तीव्र मोड़ पर अपने सुर्ख ख़िजाबि बालों को हवा में आज़ाद उड़ने नहीं देना चाहती। उसे अपने ही खुले बालों से तक़लीफ़ होने लगती है। उसकी ख्वाहिशों में अब पहाड़ी जंगलों के बीच पतली पतली उबड़ खाबड़ पगडंडियों में खो जाना नहीं है, उसके जेहन में खारे, लेकिन गहरे ठहरे समुद्र के किसी एकांत में बस जाने की चाह है। वो शांत है, और उसकी इस शांति की चाहत में किसी की दखलंदाज़ी पसंद नहीं। उसे किसी भी तरह की आवाज़ अच्छी नहीं लगती। एक अरसा हुआ उसके चेहरे पर हज़ारों ख्वाहिशों भरी मुस्कान देखे हुए। हंसी के बादल उसके चेहरे पर घुमड़ते हैं जैसे कभी कभी काले घने बादल उदासी के। दोनों ही सूरतों में वो बरसना भूल सी गयी है। हुआ क्या है उसे, वो ऐसी वैसी जैसी भी हुयी है क्यों हुयी है ? पूछते हैं उसकी सोहबत में उठने बैठने वाले पेड़,पौधे,पत्ते,फूल,आबोहवा। वो जानते हैं, उसका होना उनके लिए कितना ज़रूरी है। उसके एक एक हर्फ़ पर उन सबकी कहानी दर्ज़ है। सब सहमे हुए हैं उसकी ऊभ से। पूरे पहाड़ पर बेचैन कर देने वाली शांति है। सब जानते हैं वो लड़की जन्म से पहाड़ी नही है, लेकिन जिस अंदाज़ में उसने पहाड़ को, और पहाड़ ने उसको जाना जिया, वो उनके बीच सदियों का रिश्ता सा जान पड़ता है। पर ऐसा क्या हुआ, कि सब बिथरा बिथरा सा लगता है, अचानक दिल दहला देने वाली आवाज़ उस उबाऊ ख़ामोशी की खुमारी को तोड़ती हुयी बादलों की शक्ल में फट पड़ती है। चारों ओर सैलाब से उफनती नदियां उस लड़की को घेर लेती हैं। वो उफनाती उग्र नदियां लड़की को भयभीत करके उसके मन की थाह लेना चाहती थीं। वो लड़की अब भी खामोश एक टक सब बदलता हुआ देखती रहती है, उसकी आँखों में डर नहीं, उसकी देंह में कम्पन नहीं, उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं बचा था, सब अपने बेहद अज़ीज़ के खोने से डरते हैं, जैसे पहाड़ को अपने अज़ीज़ को खोने का है। पर उस पहाड़ी लड़की ने अपने को उस समय खो दिया था जब पहाड़ अपने सबसे खूबसूरत अंदाज़ में था। उसने दफ़्न कर दिया था अपने अल्हड़पन, अपनी खूबसूरती और रही बची टूटती उम्मीदों को प्रेम की अंतिम यात्रा में।

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