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मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

आंधियों के डर से !

घर का अंधेरा बर्दाश्त है
खिड़कियों से झाँकती इच्छाएं
दुबक कर बैठीं हैं
आंधियों के डर से अंधेरे में !

उन अंधेरों में छिप कर
क्या पाया होगा उन्होंने,
डर के सिवा ?

बहुत लोग हाँफ के मर गए
जीना जैसा जीकर
सड़क दुर्घटनाओं से ज्यादा
आत्महत्याएं हैं घर के भीतर

वो इतना डरें हुए हैं
पुरवाई उन्हें आँधी लगती है !



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