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मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

ट्रेसपासिंग !

पुलिस बहुत मारती है
दीवारें फाँद
कूदते चोरों को देख

चुराते हुए देखा गया उन्हें आज
छिपती,समय से तेज़
भूत भविष्य का आधा आधा हिस्सा
देखती नजरों को
पकड़ लिया गया
रंगे हाँथ

पुलिस भावनाओं में
इतना रूखापन क्यों होता है ?
वो उस चोरी पर
हाहाकार
मचा देती है
रौंदना चाहती हैं
अपने बूटों से

एक चोर को !

रोटी चोर,
चिल्लर चोर
छोटे छोटे सुख बटोरने वाले
बेहद अभाव में पले बढ़े बच्चे !

बहुत मारते हैं वो
थाने की ओट में
लोहे के इंजन वाले मोटे पटे से
दोनों की चमड़ी
मोटी होती जाती

रोज सुबह चाय की दुकान के पास
पुलिस, ट्रकों के ड्राइवर केबिन को
जोर से हिलाती है
उनसे कुछ चिल्लर झरते हैं
राह चलते लोग देखते हैं
मुस्कुरा के आगे बढ़ जाते हैं

पुलिस से मुस्कुराया नही जाता
उनके व्यस्ततम जीवन में
प्रेम का समय नही
एक छूटे हुए जीवन की याद में
एक काम में गुजारते
ठूँठ हो जाते हैं

नमी
खत्म हो जाती है
दो तरह की आवाज़ों में
मौन, हिंसक होता जाता है

थाने में पुलिस की मार
से उपजी टीस
हदों की दीवारें फाँदते
बड़ी होती हैं

आज फिर
कोरे कागज़ पर
सफेद झूठ से माफी लिखवाई गयी
लॉक अप में एक साथ
सच झूठ बन्द किए गए

थानों की दीवारें बहुत मोटी
और सख्त होती हैं
आवाज़ें दीवारें फाँद जाती हैं।



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