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मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

छोड़ने से पहले !

छोड़ने से पहले कुछ आवाज़े
आकाश से आती हैं
कान में उम्मीद की कुहू करके
आवाज़े वापस चली जाती हैं

बहुत से तार संवाद के
कम्पन महसूस करते हैं
कसके पकड़ते हैं
छूटने को

क्यों न सुना गया होगा
उस आह को
जो एकदम करीब से चीखी गयी होगी
सुनने वाला बहरा हो गया
या कहने वाला थक रहा होगा

वो सम जहाँ वो सबसे करीब थे
क्यों नही सुन पाए, एक दूसरे को

या ये तय होता है
मिलने के बाद खोना
खोने के बाद पाना
कुछ नया !

कुछ नया भी
भीतर या बाहर ?



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