अब बचा नही
कहने सुनने को
बुझी हुई लौ
फिर न जलेगी
न जलेंगे हमारे
स्मृतियों के पन्ने
टीस जो जोर भरती
पहर दर पहर
थक कर सो जाती
कुंठा पर सर रख कर
खर्च हो चुके रास्ते
ठूंठ हो जाते
बहुत बाद के बाद
वात से वार्ता करता मैं
नील नदी के स्वप्न में
तड़क कर उठता
चल देता
तुम्हारी ओर
मृग मरीचिका
में ओझल होता
बहुत बाद के बाद
मेरा तन मन
भाव विभोर !
2 टिप्पणियां:
बाद के बाद
सुन्दर लेखन
बहुत बाद के बाद ..... भवपूर्ण लिखा है ।।
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