गहरी भूरी आंखों ने
पीकर अथाह खारापन
रचा चित्र संसार
नभ के विशाल आंगन में
नीला समंदर देंह पर
सींचता स्वर्ण कमल
पैरों में मील का पत्थर
होता पहाड़, जंगल
अधरों का दावानल
पिघलाता बर्फ की चट्टाने
सोख लेता रोम रोम
रेत का खुरदुरापन
आग से राग का खेल
खेलता जीवन
पानी से पानी खेलता
चिर यौवन
जाने कहाँ रहता मन
बहता , जड़ हो जाता
ढूँढता एकांत ।
2 टिप्पणियां:
सारा संसार माया का सागर है, जो उससे उभरा वह तर गया समझो
बहुत सुन्दर रचना
शुक्रिया कविता जी
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