कुल पेज दृश्य

सोमवार, 18 जनवरी 2021

माया !

गहरी भूरी आंखों ने

पीकर अथाह खारापन

रचा चित्र संसार

नभ के विशाल आंगन में


नीला समंदर देंह पर

सींचता स्वर्ण कमल

पैरों में मील का पत्थर

होता पहाड़, जंगल


अधरों का दावानल

पिघलाता बर्फ की चट्टाने

सोख लेता रोम रोम

रेत का खुरदुरापन 


आग से राग का खेल

खेलता जीवन

पानी से पानी खेलता

चिर यौवन 


जाने कहाँ रहता मन

बहता , जड़ हो जाता

ढूँढता एकांत ।


2 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

सारा संसार माया का सागर है, जो उससे उभरा वह तर गया समझो

बहुत सुन्दर रचना

ANHAD NAAD ने कहा…

शुक्रिया कविता जी

कलम चोर !

एक बड़ी संस्था के  ऑफिस टेबल के नीचे ठीक बीचों बीच  एक पेन तीन दिन पड़ा रहा  ऑफिस में आने वाले अधिकारी , कर्मचारियों की रीढ़ की हड्डी की लोच...