ऊभ की दूब
सूखती हरी होती
दूब खर पतवार है
कहीं भी कभी भी
सलीके, समय तो गमलों में खिलते हैं
सूखते नहीं, मर जाते हैं
सूखती हरी होती
दूब खर पतवार है
कहीं भी कभी भी
सलीके, समय तो गमलों में खिलते हैं
सूखते नहीं, मर जाते हैं
जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...
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