ऊभ की दूब
सूखती हरी होती
दूब खर पतवार है
कहीं भी कभी भी
सलीके, समय तो गमलों में खिलते हैं
सूखते नहीं, मर जाते हैं
सूखती हरी होती
दूब खर पतवार है
कहीं भी कभी भी
सलीके, समय तो गमलों में खिलते हैं
सूखते नहीं, मर जाते हैं
प्रिय मां , मां तीसरा दिन है आज तुम्हे गए हुए । तीन दिन से तुम्हारी आत्मा को शांति देने के लिए न जाने कितने प्रयत्न कर लिए हमने । पर तुम्हा...
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