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मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025

तुम कह दो तो मन मीत बनूँ !



मन पहले भी था पार प्रिये 

मन आज भी है चीत्कार प्रिये 

तुम कह दो तो संसार तजूं 

तुम कह दो तो मझधार चुनूं 


मन आज का न जंजाल प्रिये

मन भीतर बाहर सवाल  प्रिये 

तुम कह दो तो रस मोह पियूं 

तुम कह दो तो बस टोह धरुं 


मन धीर तुम्हारे धीश प्रिये 

मन व्याकुल चंचल शीश प्रिये 

तुम कह दो तो परवान चढूं 

तुम कह दो तो पतवार बनूँ 


मन बना बनाया राग प्रिये 

मन सावन ,भादंव, फाग प्रिये 

तुम कह दो तो कोई गीत बनूँ 

तुम कह दो तो मन मीत बनूँ ! 


मन पहले भी था पार प्रिये 

मन आज भी है चीत्कार प्रिये ! 

कौन हो तुम ....

कौन हो तुम  जो समय की खिड़की से झांक कर ओझल हो जाती हो  तुम्हारे जाने के बाद  तुम्हारे ताज़ा निशान  भीनी खुशबू और  गुम हो जाने वाला पता  महस...