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सोमवार, 27 अक्टूबर 2025

आधा चुप आधा बुत !


काम का भूखा हूँ

पैसों से सूखा हूँ 

आधा चुप आधा बुत

घूमता फिरता हूँ मैं


बाज़ार में बेंचता अपना 

माल और हुनर 

इनसानियत की आड़ में 

बहुत कुछ दे आता उधार 

आधी बचत , आधी खपत 

से जिन्दगी जी रहा हूँ मैं 


खुश रहता हूँ मगर 

कभी कभी अकेले में 

दहाड़े मार हंसता भी हूँ 

कार के जमाने में बाइक पर 

झूमता , गीत गाता 

रो पड़ता हूँ मैं 


बाज़ार इतना चालू हो गया है 

अब कि उधार लिखा नहीं जाता 

व्यवहार लिखा जाता है 

रिश्तों में , नातों में 

बातों के ताने बाने में 

ठहरने की कोशिश में 

और गिर जाता हूँ मैं 


उठता गिरता संभालता 

पालता हूँ बीस का पेट 

पालना महंगा नहीं होता 

महंगी होती है उधारी 

मांगी नहीं जाती, बरती नहीं जाती 

बरतने की साध में 

सिर्फ 6 महीने जीने

की बात करता हूँ मैं 


बोलना और

अपने बोलने को सुनना 

की आदतों से घिरा 

आधा चुप आधा बुत 

बन जाता हूँ मैं !


 


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काम का भूखा हूँ पैसों से सूखा हूँ  आधा चुप आधा बुत घूमता फिरता हूँ मैं बाज़ार में बेंचता अपना  माल और हुनर  इनसानियत की आड़ में  बहुत कुछ दे आ...