दुख के संजीदा लम्हों में
मैने दुखते हृदय बुहारे
मेरी इन सांसों का कर्जा
जाने कौन उतारे
मैं हूं
मैं ही हूं
मेरा सब कुछ
मैं ही हूं
मुझसे मुझमें पूछे कौन
कौन डुबाए कौन उबारे ...
इस अवसर के उस अक्सर को
मोह दिया सब त्याग
मणि कर्णिका के घाटों का
अब पानी कौन उतारे
उतराता मैं इतराता
जानू ज्ञान गंगा के घाट
बसी अजोध्या जी जू में
राह बिसूरे राम के ठाठ
मुझसे मेरा ब्रम्ह भ्रमण
नयना क्यों दुखियारे
मैं हूं
मैं की इति हूं
अतिरेक का दर्पण हूं
मुझसे मेरा मैं मूर्छित कर
मुझको दिखा दिया रे ....
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