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शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

.....क्रमशः फिर वही चंडीगढ़ !

 


आधी रात बीत चुकी है । फिल्म के कंप्लीट करने का डेडलाइन मुंह बाए खड़ा है । बॉस काम को समय से पूरा करने की तसल्ली , अपने बॉस को दे रहे हैं । मैं जहां हूं , वहां से बहुत दूर हूं । दूरी होने की वजह से काम की चिंता तो दिन रात हावी है । पर काम की चाल लगभग शून्य पर अटक गई है । फिल्म का एडिटर दिल्ली में है । जो कहीं फूल टाइम जॉब करता है । फिल्म के डायरेक्टर साहब मुंबई में हैं । वो किसी जरूरी काम से हैं वहां । हमारे क्लाइंट दिल्ली और चंडीगढ़ में हैं । उनके पास हमारे जैसे कई लोग हैं देखने सुनने को । उनको काम चाहिए । हमारी व्यस्तताओं की कहानी नही । 

  पिछले कुछ दिनों से मैने हिंदी की 20 फिल्मों के लिए करेक्शन कई जगह , कई बार लिखे । डायरेक्टर साहेब की नसीहतों के नक्श ए कदम पर मैं चले जा रहा था । मेरे पास लैपटॉप या कंप्यूटर नही है । लिहाजा सारे काम फोन पर ही होते हैं । फोन पर स्क्रिप्ट लिखना । फोन पर कंटेंट रिव्यू करना , मिसिंग को ढूंढना फोन पर । बीस फिल्मों के कंटेंट को कई बार डाउनलोड करना , उनके साथ खेलना बहुत मुश्किल हो जाता है । और उबाऊ भी ।

  एडिटर जब जब करेक्शन की लिस्ट देखता है । तो भड़क जाता है । फिल्मों की एडिटिंग , कलर ग्रेडिंग , रिव्यू और अपीयरेंस को परखने के लिए हर बार आउटपुट निकाल कर लो रेज फाइल ग्रुप में डालना । प्रोजेक्ट को खोलने बंद करने में लगभग आधा घंटे का समय लग जाता है । ऊपर से इतनी बाधाएं । चंडीगढ़ चैप्टर का पहला फेज खत्म होने के बाद उसने चैन की सांस ली थी । कि अब वो इत्मीनान से शादी कर पाएगा । की भी । 

     पर कुछ ही महीने के भीतर इस प्रोजेक्ट का दूसरा फेज चालू हो गया । बड़े ही मायूसी भरे शब्दों में एडिटर साहब ने बातों ही बातों में बताया कि उन्हें इस काम के लिए कुछ भी नही मिला है । उन्हें मांगना अच्छा नहीं लगता । हमारी टीम में अधिकतर लोग ऐसे ही थे । जिन्हे मांगना अच्छा नहीं लगता । 

   पहली नजर में काम की पेचीदगी समझ नही आई । फिल्में अपने खांचों में फिट थी । बस थोड़ा नया अपडेट करना था । पर क्लाइंट को चाहिए था सब कुछ नए कलेवर में । इस काम को पूरा करने के लिए । हमारी टीम ने सोचा था कि कुछ दिनों के लिए चंडीगढ़ जा कर कुछ सीन्स , इंटरव्यू और प्रोफाइल शूट किए जाएंगे । पर ऐसा संभव नहीं हो सका । समयाभाव या धनाभाव कुछ तो जरूर रहा होगा । मुझे रह रह कर अपने इधर कही जाने वाली कहावत " थूक में सतुआ सानना" रह रह कर याद आ रहा था । 

इस पूरे काम के पहले चरण में जो दुश्वारियां मैने झेली थी । उनका असर मेरे दिल ओ दिमाग में गहरा था । मुझे चंडीगढ़ के नाम से नफरत होने लगी । मैने यह बात सिवाय अपने डायरेक्टर के किसी से नहीं साझा की । काम की भसड़ का पैमाना बहुत जटिल होता जा रहा था । और उस समय बॉस से हर्जा खर्चा तक की बात न हो पाना । मेरे लिए जग हंसाई का सबब बन सकता था । लगातार 20 दिनों तक कुछ घंटे की नींद । और जबरदस्त तनाव , दबाव में काम । हमारे बॉस का मानना था । कि यह पूरा प्रोजेक्ट मेरे लिए फिल्म स्कूल है । यह सब मेरे लिए पहली बार हो रहा था । 

ऐसा भी नहीं था । कि मेरे द्वारा कोई इतिहास रचा जा रहा हो । 

कुछ न कुछ तो लगातार मन में कचोट रहा था । कम संसाधनों में काम को पूरा करना , गिरी से गिरी स्थिति में काम को करने का मोटिवेशन हमारे बॉस का शगल है । वो अक्सर भविष्य के दिवा स्वप्न दिखा कर वर्तमान को पार कर जाते । और उनकी नांव में हम सब भी । 


  

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