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शनिवार, 27 जुलाई 2024

प्रिय पहाड़ ,

 


प्रिय पहाड़ , 

                कैसे हो ? मैं यहां ठीक से हूं । आशा है तुम भी वहां लाख आपदाएं सहकर ठीक से होगे ! मैं जब तुम्हारे खूबसूरती पर कसीदें पढ़ने वाले लोगों की आंखों में भय देखता हूं । तो सोच में पड़ जाता हूं । तुम्हारी खबरें मुझे यहां मैदान में ही मिलती रहती है । अब सूचना और प्रसारण के युग में पहाड़ और नदियों के हाल न मिले । तो आश्चर्य तो होगा ही । 

तुम्हारे नदियों के ऊपर गिरने की सबसे ज्यादा खबरें होती हैं । तुम्हारे गिरने को लैंडस्लाइड कहते हैं शायद । टीवी पर , अखबारों में , सोशल मीडिया पर तुम्हारी तबाही की तस्वीरें खूब मार्मिक ढंग से बतलाई जाती हैं । तुम्हारे सर से ,  कांधों से उतर कर लाखों लोग मैदान पर रह रहे हैं । वो सब ऐसी ही बाते बताते हैं । 

कभी धरती के दो टुकड़ों के टकराने से बने पहाड़ों की छाती पर हम इंसान चढ़ गए हैं । कुदाल , फावड़ा तसला और अर्थ मूवर मशीन लेकर हम तुम्हारे कांधों पर सवार हो गए हैं । तुम्हारे आकार प्रकार के सामने हम इंसान चिटियों की तरह तुम्हारे श्रृंखलाओं पर दिन रात चलते रहते हैं । हमारे देव स्थान तुम्हारी चोटियों पर हैं । तुम्हारी चोटियों पर शायद इसलिए हों । कि हमें तुम्हारी खबर रहे । 

मूरख हैं हम सब । पहाड़ ! यार तुम समझते क्यों नहीं हो । तुम्हारे भीतर कितना धैर्य है ? तुम्हारी तथस्तता , तुम्हारा अटल खड़े रहना हमको अच्छा नहीं लगता है । हम चाहते हैं कि इस पृथ्वी की हर वस्तु हमारे काम आ जाए । हमारे लॉन में आकर सज जाए । जब नही सजती तो फिर प्रयोग करते हैं । तुम्हे पा लेने के । मुझे दया आती है । उन पर्वतारोहियों पर ।  इतनी कड़ी मेहनत कर के तुम्हारे शिखर को छू कर आने का हौंसला पहाड़ इतना बड़ा हो सकता है । 

लेकिन आस्था के नाम पर गांव शहर बसते । पहाड़ों पर बढ़ती आबादी , बढ़ते कंक्रीट के ढांचे तुम्हे नुकसान पहुंचा रहे हैं । मल, मूत्र प्लास्टिक कचड़ा , इलेक्ट्रॉनिक्स सब तुम्हारे जीवन धारा को अवरूद्ध कर रहे हैं । 

तुम्हारी देह को सांस लेने में दिक्कत हो रही होगी । 

तुम्हे याद है न ! जब मैं और तुम रात कहीं गुम हो गए थे । मैं पैदल चलता जा रहा था । तुम मुझे कहीं भी थकने नही दे रहे थे । पूरी रात मैं चला पैदल तुम्हारे साथ । और कोई इंसान नही था उस रात हमारे बीच । मैं केवल मौन चल रहा था । तुम्हारे ऊपर रहने वाले अनगिनत जीव जंतु जंगल की खूबसूरती को रात के अंधेरे में एंजॉय कर रहे थे । चांद कभी पेड़ो में छिपता तो कभी पहाड़ों में ।


पहाड़  तुम धरती का ही हिस्सा हो । मैं मानता हूं । पर ...

हमारे लोग तुम्हारे भीतर सीमेंट और लोहा भर दे रहे हैं । तुम्हारा प्राकृतिक आनंद जा रहा है । मुझे डर है । कहीं तुम सूख तो नही रहे हो । 

तुम्हारा सूखना , मतलब दरकना और दरकना मतलब तबाही । देखो ना ! तुम्हे मै डरा हुआ सा महसूस हो सकता हूं । मैं वाकई हूं । तुम्हारी फिक्र भी है मुझे । पर मैं क्या कर सकता हूं । मैं कोई सरकार नही । 

मैं कोई क्रांतिकारी नही , मैं कोई इतनी बड़ी ताकत नहीं जो तुम्हारे साथ हो रहे दुर्व्यवहार को मैं खत्म कर सकूं ।लेकिन हां ! वो लोग सब  मेरे जैसे ही हैं । 

मैं नहीं आया बहुत साल से तेरे पास । गुस्सा आता था मुझे । तुम्हारे ऊपर हो रहे अतिक्रमण और जोर जबरदस्ती को देख कर । कितने साल हो गए ! तुमसे मिले हुए । दस साल से शायद । अब तो सब और बदल गया होगा । कुछ नई हवाएं , घनघोर विकास की हवाएं चली हैं इधर । उनका तुम पर क्या असर पड़ रहा होगा । इस बात को तुम बताते भी नही ।

तुम मेरी तरह खत नही लिख सकते । अनपढ़ कहीं के ! बुद्धू ! लोग ठीक ही कहते हैं जो बड़ा होता है उसका दिमाग पैरों में आ जाता है । 

मैं तुम्हारी जगह होता । तो एक बार में करवट बदलता । बस सब झील झांझर जमीन में या नदियों में । किसी नुकसान का ठेका न लिया होता । 

मेरे साहसी पहाड़ , अपना ख्याल रखो । रख पाओ जैसे रख पाओ । हमारी चिंताएं करनी छोड़ो ।

हम तो चीटियां हैं । अपना काम करते रहते हैं । हमारे पास हेलीकॉप्टर है , हमारे पास बारूद है । हमारे पास रॉकेट है परमाणु है । वैसे हमारी तादात इतनी है कि 8 से 10 हजार लोग एकसाथ न रहे । तो कोई फर्क नहीं । हम जब किसी हादसे से बच जाते हैं । तो हमें लगता है । हम खुदा हो गए हैं । सोचता हूं इस खत के तुरंत बाद या थोड़े समय के बाद । मैं आ पाऊं तुमसे मिलने ! मुझे स्वीकार तो करोगे ना । मैं दबे पांव आऊंगा तुम्हारे पास । तुम्हारी ओट में कहीं शरण पाऊंगा । और कुछ दिन गुजारूंगा तुम्हारे साथ , बिना तुम्हे सताए । 

मैं तुम्हारे शिखरों पर विराजमान देवताओं से तुम्हारी रक्षा का आवाहन करता हूं । तुम्हारे शिखाओ पर शोभायमान समस्त देवियों से प्रार्थना करता हूं । कि तुम्हे हमारे प्रकोप से बचाए । 

प्रिय पहाड़ , अपनी नदियों को संभाल के रखना । मैं आता हूं जल्द तुम से मिलने।  


तुम्हारा 

मैं !


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