पूछते क्यों नही
आकाश का पानी
कहाँ गया सारा
धरा की प्यास
बुझी नही
क्यों अब तक ?
कब तलक
झुकी घटाएं
नाट्य रूपांतरण
करती रहेंगी
मेरी प्यास पर
रोना आता है मुझे
मुझे मेरी तरह
निबाह लो !
निकला हूं मैं दिन खर्चने थोड़ा नमक थोड़ा सुकून थोड़ी सी ले परेशानियां निकला हूं मैं दिन खर्चने निकला हूं मैं दिन खर्चने बहती यहां नदिया...
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