पूछते क्यों नही
आकाश का पानी
कहाँ गया सारा
धरा की प्यास
बुझी नही
क्यों अब तक ?
कब तलक
झुकी घटाएं
नाट्य रूपांतरण
करती रहेंगी
मेरी प्यास पर
रोना आता है मुझे
मुझे मेरी तरह
निबाह लो !
फिर झुंझलाकर मैने पूछा अपनी खाली जेब से क्या मौज कटेगी जीवन की झूठ और फरेब से जेब ने बोला चुप कर चुरूए भला हुआ कब ऐब से फिर खिसिया कर मैन...
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