एक आदमी रोज
घर से निकलता है
शहर की जिम्मेदारी लिए
कांधों पर लादे कैमरा
और हांथ में लट्ठ
पोर्टेबल फॉर्म में
जिसका इस्तेमाल मुंह में
खोंस देना है
और तमाम होते तमाम
सन्न देखते रहते हैं अपना
चेहरा टी वी पर
मोबाइल पर !
एक आदमी रोज
घर से निकलता है
जरूरत के सामान लाने
गर्मी , सर्दी बरसात लिए
कांधों पर
और जिम्मेदारियां तमाम घर की
ओढ़े अपने अस्तित्व पर
भटकता है शहर की
ख़ाक छानता, सड़कों
पर अराजकता और अतिक्रमण
का युद्ध लड़ता
छल कपट और लूट
के डर से
महंगाई लांघता शाम को
घर वापस आता है
देख कर घर झुंझलाता है
दिन की थकान घर पर
उतार , पेट तान सो जाता है !
एक आदमी रोज
घर से निकलता है
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