पहले काव्य छोड़ा
फिर पद्य में कहना
मां ने पढ़ना छोड़ दिया
काढ़ना भी छोड़ दिया
गमलों का शौक था उसे
और गमलों में फूलों का
हर बार किसी फूल के खिलने पर
वो सबको दिखाती
देखने वाले वाह करते
और निकल जाते
गमलों में रसोई से निकले
खनिजों , लवणों को
वो इस्तेमाल कर लेती
उसे महसूस होता
खराब को कारगर करने
का सुख
बाहर के बंदरों से
तंग आकर छोड़ दिया
उसने पौधों से बात करना
अब मां टाइम से
सबको चाय देती है
खाना देती है
गर्म पानी देती है
अब वो दालें , सौंफ और अजवाइन
बीनती है
खरबूजे के बीजे साल भर
फोड़ती है
मां नही बताती कुछ भी
किसके लिए भी नही
मां अप
नी दुनिया का
हर राज छिपाए रखती है
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