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शुक्रवार, 20 सितंबर 2024

प्रियो की पीर !

 क्या ऐसा कोई हो

टोका गया न हो 

भीतर की गगरी छलके

अंदर का जवार न हो 


कोई ऐसा क्यों नहीं 

दुखता , व्यतीत होता 

समय के हाल पर 

अपनों के सवाल पर 

दिखते उड़ते कीट पतंगे


मां कहने को मजबूर

निकल जाओ फरक नही 

पिता फूटी आंख न सोहता 

पत्नी बच्चे फूंस पर गांठते


रेंगते कनखजूरे स्वस्थ होते

जंगलों में लताओं में 

भेड़िए निकल आए जंगलों से 

जल भराव भूचाल आंखों में

तरसते अपने प्रिय के बोल 


सृजन से संभव है प्रिय जन

घोंसले में पड़कुली 

सेती

प्रियों की पीर !


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प्रियो की पीर !

 क्या ऐसा कोई हो टोका गया न हो  भीतर की गगरी छलके अंदर का जवार न हो  कोई ऐसा क्यों नहीं  दुखता , व्यतीत होता  समय के हाल पर  अपनों के सवाल प...