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रविवार, 20 अक्तूबर 2024

AI

 

इन दिनों भागता फिरता हूं

खुद से , मोबाइल से 

और अपनों से 

सब काटने दौड़ते हैं 


दौड़ता हूं मैं भी 

एकांत ढूंढने 

काट खाता हूं 

जो भी ऊंची आवाज में 

कहता है कोई काम 

और भूलता है बदले में

चुप देना 


समझ लिया जाना चाहिए 

खुद ब खुद 

भाव भंगिमाओं से और 

चाल चलन से मेरे


क्या हम भूल गए हैं 

इंसानी नब्ज़ को 

रात की थाली में 

परोसे हुए तारे 

पोखर का किनारा 

हरा भरा उपवन , मन 


और बैठ के साथ 

कुछ वार्तालाप, आदान प्रदान 

विचारों का भी 


भागते भागते लिखने का प्रयास

भी होता है टूटने के बाद 

कुछ दर्ज कर लेना 

जैसे इतिहास लिखा जा रहा हो 

नीरव अनुभवों का 

हार को जीत में दर्ज कर लेना

विजय नहीं है 


नया शगल आया है 

जीवन में AI  का 

घने लदे बादलों में के बीच से 

एक बूंद गिरती है 

दृष्टि भर ऊसर में 

उग आती है गेहूं की एक बाली 

और भी सारा कुछ एकांत 

में लिपटा मिल जाता है 


नहीं ढूंढ पा रहा हूं खुद को 

भागते भागते सड़कों , गांवों 

शहरों के मध्य 


मन के गहरे तलहटी में 

दुनिया के दूसरे हिस्सों में 

चल रहे युद्ध की चीत्कार

और युद्ध की विवशता पर 

खीझ काई सी लगती है 



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AI

  इन दिनों भागता फिरता हूं खुद से , मोबाइल से  और अपनों से  सब काटने दौड़ते हैं  दौड़ता हूं मैं भी  एकांत ढूंढने  काट खाता हूं  जो भी ऊंची आ...