बच्चे मर जाते हैं
जब पिता मर जाते हैं
और मर जाते हैं
बच्चों के भीतर
अनुत्तरित हजारों सवाल
बच्चे मर कर
जी कर जब
बनते हैं एक पिता
तो मारते हैं एक
पिता को वो भी
पिता पुत्र के बीच
की खाई को सिर्फ
मौन पाट पाता है
संवाद के
अनगिनत बहाने
ढूंढ लेती है
पिघली बर्फ
दोनों तरसते हैं
तिल तिल
गले मिलने को
नहीं मिलते विचार
फिर भी आदतें
मिलती हैं
शीत युद्ध के
कुचक्र से
क्षत विक्षत
पिसते हैं
पिता पुत्र
के संबंध
लंबे अरसे तक
सम्मान की सफेद
चादर में लिपटे
जज़्बात छटपटाते हैं
आत्मग्लानि के बोध
से ढह जाते हैं
आशाओं के किले
और छत्र छाया
का आभास टूट कर
बिखर जाता है
तब पिता के साथ
पुत्र भी नहीं रहते ।
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