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सोमवार, 5 अगस्त 2024

एक आदमी !



एक आदमी रोज

घर से निकलता है 

शहर की जिम्मेदारी लिए


कांधों पर लादे कैमरा 

और हांथ में लट्ठ 

पोर्टेबल फॉर्म में 

जिसका इस्तेमाल मुंह में

खोंस देना है 

और तमाम होते तमाम 

सन्न देखते रहते हैं अपना 

चेहरा टी वी पर 

मोबाइल पर !


एक आदमी रोज

घर से निकलता है 

जरूरत के सामान लाने 

गर्मी , सर्दी बरसात लिए

कांधों पर 

और जिम्मेदारियां तमाम घर की 

ओढ़े अपने अस्तित्व पर 

भटकता है शहर की

ख़ाक छानता, सड़कों 

पर अराजकता और अतिक्रमण

का युद्ध लड़ता 

छल कपट और लूट

के डर से 

महंगाई लांघता शाम को

घर वापस आता है 

देख कर घर झुंझलाता है 

दिन की थकान घर पर 

उतार , पेट तान सो जाता है !


एक आदमी रोज 

घर से निकलता है 


रविवार, 4 अगस्त 2024

मां ने पढ़ना छोड़ दिया !



पहले काव्य छोड़ा

फिर पद्य में कहना 


मां ने पढ़ना छोड़ दिया

काढ़ना भी छोड़ दिया


गमलों का शौक था उसे

और गमलों में फूलों का 

हर बार किसी फूल के खिलने पर

वो सबको दिखाती 

देखने वाले वाह करते 

और निकल जाते 


गमलों में रसोई से निकले

खनिजों , लवणों को 

वो इस्तेमाल कर लेती 

उसे महसूस होता 

खराब को कारगर करने

का सुख


बाहर के बंदरों से 

तंग आकर छोड़ दिया

उसने पौधों से बात करना 


अब मां टाइम से 

सबको चाय देती है 

खाना देती है 

गर्म पानी देती है 


अब वो दालें , सौंफ और अजवाइन

बीनती है 

खरबूजे के बीजे साल भर

फोड़ती है 


मां नही बताती कुछ भी 

किसके लिए भी नही 

मां अप

नी दुनिया का

हर राज छिपाए रखती है 



गुरुवार, 1 अगस्त 2024

सुनो !


पूछते क्यों नही 

आकाश का पानी

कहाँ गया सारा


धरा की प्यास

बुझी नही 

क्यों अब तक ?


कब तलक

झुकी घटाएं 

नाट्य रूपांतरण

करती रहेंगी 


मेरी प्यास पर 

रोना आता है मुझे

मुझे मेरी तरह 

निबाह लो !


कबाब में हड्डी !

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