कब तक अतीत से भागे मन
मन भीतर करता क्रंदन
सांझ कंटीली, प्रीत चुटीली
रिसता आंगन, नीर , गगन
धैर्य बुलावे पास ना जावै
उग्र बुढापा चिर यौवन
मरता करता क्या ना करता
देख डरें जो चोर नयन !
गुड की ढेली , नीम हथेली
इक खाट बिछे सब जन धन ।
मैं गया था और लौट आया सकुशल बगैर किसी शारीरिक क्षति और धार्मिक ठेस के घनी बस्ती की संकरी गलियों की नालियों में कहीं खून का एक कतरा न दिखा ...
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