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मंगलवार, 18 मई 2021

विपश्यना !

कब तक अतीत से भागे मन

मन भीतर करता क्रंदन 

सांझ कंटीली, प्रीत चुटीली

रिसता आंगन, नीर , गगन 

धैर्य बुलावे पास ना जावै

उग्र बुढापा चिर यौवन

मरता करता क्या ना करता

देख डरें जो चोर नयन !

गुड की ढेली , नीम हथेली

                                     इक खाट बिछे सब जन धन ।

 

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