मैं सो गया
नितांत एकांत में
जहां मैं था
तुम थे
और अवसान !
भरी दुनिया से थका
हारा ढूँढता
शीत का प्याला
टिमटिमाती रौशन
लड़ी में पिरोये पहाड़
टूटे नहीं उस दिन
जब मैं सो गया !
निकल जाओ मेरे घर से बाहर . अब तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं है . तुम सर पर सवार होने लगी हो . अपनी औकात भूलने लगी हो . ज़रा सा गले क्या लगा लिय...
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