कब तक अतीत से भागे मन
मन भीतर करता क्रंदन
सांझ कंटीली, प्रीत चुटीली
रिसता आंगन, नीर , गगन
धैर्य बुलावे पास ना जावै
उग्र बुढापा चिर यौवन
मरता करता क्या ना करता
देख डरें जो चोर नयन !
गुड की ढेली , नीम हथेली
इक खाट बिछे सब जन धन ।
कब तक अतीत से भागे मन
मन भीतर करता क्रंदन
सांझ कंटीली, प्रीत चुटीली
रिसता आंगन, नीर , गगन
धैर्य बुलावे पास ना जावै
उग्र बुढापा चिर यौवन
मरता करता क्या ना करता
देख डरें जो चोर नयन !
गुड की ढेली , नीम हथेली
इक खाट बिछे सब जन धन ।
मैं सो गया
नितांत एकांत में
जहां मैं था
तुम थे
और अवसान !
भरी दुनिया से थका
हारा ढूँढता
शीत का प्याला
टिमटिमाती रौशन
लड़ी में पिरोये पहाड़
टूटे नहीं उस दिन
जब मैं सो गया !
प्रेम कहना
और उड़ लेना
ततैये के पंख पर
हो लेना
हवा के साथ
समय से दूर
उस व्यक्ति से भी
जिससे आप प्रेम करते हैं।
बचा के रखना होता है
प्रेम को
उन पलों के लिए
जिनकी साख पर
क्रूर हांथों वाली
जानलेवा महामारी
तांडव करती है ।
लौट आता हूं मैं अक्सर उन जगहों से लौटकर सफलता जहां कदम चूमती है दम भरकर शून्य से थोड़ा आगे जहां से पतन हावी होने लगता है मन पर दौड़ता हूं ...