कला का पात्र !
तुम्हारे लिखे में मेरी याद के अलावा कुछ नहीं होता . लिखना कितना जरुरी है यह बात मैंने तुम्ही से जानी . तुमको अक्सर देखा मैंने रोते हुए . कभी रसोईं में, कभी छत पर . कभी शाम की चाय पर, तो कभी बाज़ार से सब्जियां लाते वक़्त . तुम कभी कभी हँसते हुए भी रो देती .
मैंने जब भी तुम्हारे रोने की वजह पूछी . तुम भटके हुए राही की तरह गहरे मौन में चली जातीं . कोई सुबह चुपके से मेरी झोली में एक कहानी डाल जाती. मैं उन्हें कहानियों के तौर पर पढता. तुम्हारे लिखने के कौशल पर विस्मित होता. वाह और आह के बीच का वन लाइनर तुम्हे सहृदय प्रस्तुत कर देता . पर तुम्हारा रोना कभी ख़त्म नहीं हुआ , जैसे तुम्हारी कहानियां कभी ख़त्म नहीं होती.
तुमने मेरे भीतर पढने की आदत बोने के लिए कई कहानियाँ लिखीं . मेरी हर एक आदत पर एक किरदार गढ़ा . हर किरदार के इर्द गिर्द एक संसार रचा . उस संसार में तुम्हारे मन की थाह होती. थाह से गहरी होती तुम्हारी उदासी .
हम कहानियों के माध्यम से, परत दर परत खुलते गए. खुलती परतों में हमने पाया कि हम कभी मिले ही नहीं . जो मिले थे वो हम नहीं थे . अब तक ! जब मैंने कुछ कुछ पढना सीख लिया था . तुम्हारी मोटी कहानियों वाली डायरी भर चुकी थी .
डायरी में दर्ज आखरी कहानी ने तुम्हे बुरी तरह झुलसा दिया था . तुम्हारे हाँथ कांपते, हृदय गति रुक जाती , कई बार बेसुध पायी जाती तुम . यदि तुम्हे कुछ हो जाता तो ! इस कहानी का किरदार लम्बे समय तक अटका रहा तुम्हारे गले में, फांस की तरह . लम्बा सांवला मुस्टंड , घुंघराले बाल , पकी दाढ़ी, बड़ी बड़ी डरावनी आँखें ...... गिठी , कोमल, छोटी आँखों में बड़े ख्व़ाब लिए तितली की तरह उसकी प्रेयसी . उनके बीच ज्वाला बन चुके आक्रांत प्रेम में कुछ नहीं बचना था . तुम उस कहानी का सुखान्त चाहती थीं . मार देना चाहती थीं उन दोनों में से किसी एक को .
उस डायरी की आखरी कहानी खूब सराही गयी . तुम्हे कहानीकार कहलाना पसंद नहीं था. इसलिए तुमने लिखना बन्द कर दिया . तुम्हारी आँखों ने अब कहानियां पीना भी सीख लिया था .
बचपन में एक उड़न खटोले पर मैं और मेरी नानी लेटे लेटे तारों को देखते . नानी पूछती ! इन अनगिनत कहानियों में से कौन सी कहानी सुनोगे . मैं किसी एक तारे की और इशारा करता . नानी शुरू हो जाती. नानी की कहानियों के पात्र जैसे उसकी खेती थी . शेर , शिकारी , गिलहरी, बिल्ली , मोर .... जंगल , खेत खलिहान,पगडण्डी , आले, डिबरी .... नानी पढ़ी लिखी नही थी . शायद इसी लिए उसकी कहानियों में प्रेम और सीख सरीखे शब्द नहीं होते . उसकी कहानियों का अंत " ख़ुशी ख़ुशी रहन " से होता.
तुम्हारे लिखे में मेरी याद के अलावा कुछ नहीं होता . लिखना कितना जरुरी है यह बात मैंने तुम्ही से जानी . तुमको अक्सर देखा मैंने रोते हुए . कभी रसोईं में, कभी छत पर . कभी शाम की चाय पर, तो कभी बाज़ार से सब्जियां लाते वक़्त . तुम कभी कभी हँसते हुए भी रो देती .
मैंने जब भी तुम्हारे रोने की वजह पूछी . तुम भटके हुए राही की तरह गहरे मौन में चली जातीं . कोई सुबह चुपके से मेरी झोली में एक कहानी डाल जाती. मैं उन्हें कहानियों के तौर पर पढता. तुम्हारे लिखने के कौशल पर विस्मित होता. वाह और आह के बीच का वन लाइनर तुम्हे सहृदय प्रस्तुत कर देता . पर तुम्हारा रोना कभी ख़त्म नहीं हुआ , जैसे तुम्हारी कहानियां कभी ख़त्म नहीं होती.
तुमने मेरे भीतर पढने की आदत बोने के लिए कई कहानियाँ लिखीं . मेरी हर एक आदत पर एक किरदार गढ़ा . हर किरदार के इर्द गिर्द एक संसार रचा . उस संसार में तुम्हारे मन की थाह होती. थाह से गहरी होती तुम्हारी उदासी .
हम कहानियों के माध्यम से, परत दर परत खुलते गए. खुलती परतों में हमने पाया कि हम कभी मिले ही नहीं . जो मिले थे वो हम नहीं थे . अब तक ! जब मैंने कुछ कुछ पढना सीख लिया था . तुम्हारी मोटी कहानियों वाली डायरी भर चुकी थी .
डायरी में दर्ज आखरी कहानी ने तुम्हे बुरी तरह झुलसा दिया था . तुम्हारे हाँथ कांपते, हृदय गति रुक जाती , कई बार बेसुध पायी जाती तुम . यदि तुम्हे कुछ हो जाता तो ! इस कहानी का किरदार लम्बे समय तक अटका रहा तुम्हारे गले में, फांस की तरह . लम्बा सांवला मुस्टंड , घुंघराले बाल , पकी दाढ़ी, बड़ी बड़ी डरावनी आँखें ...... गिठी , कोमल, छोटी आँखों में बड़े ख्व़ाब लिए तितली की तरह उसकी प्रेयसी . उनके बीच ज्वाला बन चुके आक्रांत प्रेम में कुछ नहीं बचना था . तुम उस कहानी का सुखान्त चाहती थीं . मार देना चाहती थीं उन दोनों में से किसी एक को .
उस डायरी की आखरी कहानी खूब सराही गयी . तुम्हे कहानीकार कहलाना पसंद नहीं था. इसलिए तुमने लिखना बन्द कर दिया . तुम्हारी आँखों ने अब कहानियां पीना भी सीख लिया था .
बचपन में एक उड़न खटोले पर मैं और मेरी नानी लेटे लेटे तारों को देखते . नानी पूछती ! इन अनगिनत कहानियों में से कौन सी कहानी सुनोगे . मैं किसी एक तारे की और इशारा करता . नानी शुरू हो जाती. नानी की कहानियों के पात्र जैसे उसकी खेती थी . शेर , शिकारी , गिलहरी, बिल्ली , मोर .... जंगल , खेत खलिहान,पगडण्डी , आले, डिबरी .... नानी पढ़ी लिखी नही थी . शायद इसी लिए उसकी कहानियों में प्रेम और सीख सरीखे शब्द नहीं होते . उसकी कहानियों का अंत " ख़ुशी ख़ुशी रहन " से होता.
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