देखते रहना सुकून से
वक़्त की चाल
जहाँ बैठे हो बैठे रहो !
कोई चाल चमक जाएगी
पेशानियों पर
झुर्रियों से लहू टपकने लगे
समझ लेना युवा उफान पर है
बोलती और बखानियों में
अंतर कोई ज़्यादा नही
एक उम्र का तकाज़ा
मुट्ठी भर ईमान का।
बड़ों की तितलियों से
कभी कुनबा महकता था
वली की भित्तियों से राह तक
कभी चिमनी का धुवाँ
आम होता था।
वक़्त की चाल
जहाँ बैठे हो बैठे रहो !
कोई चाल चमक जाएगी
पेशानियों पर
झुर्रियों से लहू टपकने लगे
समझ लेना युवा उफान पर है
बोलती और बखानियों में
अंतर कोई ज़्यादा नही
एक उम्र का तकाज़ा
मुट्ठी भर ईमान का।
बड़ों की तितलियों से
कभी कुनबा महकता था
वली की भित्तियों से राह तक
कभी चिमनी का धुवाँ
आम होता था।
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