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शनिवार, 23 नवंबर 2019

वक़्त

देखते रहना सुकून से
वक़्त की चाल
जहाँ बैठे हो बैठे रहो !

कोई चाल चमक जाएगी
पेशानियों पर
झुर्रियों से लहू टपकने लगे
समझ लेना युवा उफान पर है

बोलती और बखानियों में
अंतर कोई ज़्यादा नही
एक उम्र का तकाज़ा
मुट्ठी भर ईमान का।

बड़ों की तितलियों से
कभी कुनबा महकता था
वली की भित्तियों से राह तक
कभी चिमनी का धुवाँ
आम होता था।

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