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सोमवार, 11 सितंबर 2017

मैं तुम्हे सम्मानित करता हूँ ...!

मुझे मालूम था , तुम्हे सम्मान पाना अच्छा लगता है। तुम खुश होगे जब मैं तुम्हे सम्मानित कर रहा होऊंगा। पर सम्मानित होने के बाद कभी भी शिकायत भरी नजरों से मत देखना, जब मैं किसी और को सम्मानित कर रहा होऊंगा। मैं औसतन हर दूसरे दिन किसी का सम्मान करता हूँ। मैं सम्मानित करने से सम्मानित महसूस करता हूँ। और सम्मानित होता हुआ दूसरे के गालों पर सम्मान की गुलाबी मुस्कान देखता हूँ। मेरे हर सम्मान समारोह में मंच पर बैठे सम्मान के चश्मदीद, मुझपर यकीन रखते हैं कि मैं एक दिन उन्हें भी सम्मानित करूँगा। सम्मान खालिस लेन देन का विषय है। ये मूक सहमति होती है सम्मान देने और पाने वाले के बीच।
       मुझे याद आ रहा है एक मंच सम्मान समारोह का। जहाँ एक व्यक्ति ने सम्मानित होने के क्रम को खंडित करते हुए पूछा था, ये सम्मान समारोह किस लिए, किसके लिए ? सबने खीझते हुए एक स्वर में पूछा क्या इस लिए तुम्हे इस समारोह में आमंत्रित किया गया था ? ये सम्मान का कार्यक्रम है, उसपर सवाल उठाने वालों का नही। विशिष्टिता, बौद्धिकता, सृजनात्मकता, रचनाधर्मिता सब आधुनिक काल के सम्मान शास्त्र पर आधारित हैं। तुम्हें नही मालूम ? सब सम्मान से ही चलता है, घर, व्यवहार, यहाँ तक सरकारें भी। प्रश्न उठाने वाले के चेहरे पर प्रतिरोध की सबल मुस्कुराहट देख कार्यक्रम में गहरी खामोशी पसर गयी । वो चल पड़ा दरवाजे की ओर, सम्मानित मंच और ऊंघते दर्शकों की खुली आँखों में झांकते हुए। मेरी नज़रे उसको सम्मान पूर्वक दरवाज़े तक छोड़ कर आयीं। उसके बाद वो हममे से किसी को नही दिखा। मेरी नज़रें तुम्हे खोजती है, मैं तुम्हे सम्मानित करना चाहता हूँ।

एक काव्य संग्रह के लोकार्पण कार्यक्रम में जैसा महसूस हुआ

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मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

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