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मंगलवार, 19 सितंबर 2017


अजोध्या की सरजू

न न...राम की अजोध्या कहने में आपको कोर्ट के फैसले का इंतज़ार करना पड़ेगा। राम अपने ही जन्म स्थल पर अभी न्यायिक हिरासत में हैं। वो कैद हैं, 14 टुकड़ी पी ए सी, 2 टुकड़ी सी आर पी एफ (सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स) और सैकड़ों पुलिस कर्मियों की देख रेख में एक तिरपाल के नीचे। अजोध्या तो फिलहाल सरजू की ही है। उसको किसी के फैसले का इंतज़ार नही है। वो बह रही है निर्बाध। उसके किसी भी स्पर्श, भाव, विचार पर कोई पाबंदी नही है। कैसे लगाओगे पाबंदी ? वो तुम्हारी हद में नही है।  तुमने राम को जना, तो वो भौतिक संसार की भौतिकी से कैसे बच पाएंगे ? खुद फंसे हो और राम को उनके ही घर में कैद करके रखा हुआ है।
      अमानती सामान की जमानत, 5 जगह सघन सुरक्षा जांच, घंटे भर संकरे जाली नुमा पिंजड़े में जलेबी की तरह घूमते घूमते एक जगह किसी पंडे ने राम नामी प्रसाद पकड़ा दिया। सोचा आगे कहीं चढ़ाना होगा। जाली के ऊपर से आततायी बंदरों के पेशाब व लार गिरने का डर और कतार में बेकल श्रद्धालुओं की आपाधापी में वो जगह दिखी ही नही। जाली वाले पिंजड़े से जैसे ही बाहर निकला तो एक बोर्ड पर लिखा था "बाहर जाने का रास्ता"। मैं ठगा सा रह गया। ठीक उसी वक़्त दिमाग में अमानती लॉकर से लेकर बाहर जाने के रास्ते वाले बोर्ड तक वो यात्रा तड़क गयी। वो जगह कहाँ कब निकली , पूछने पर किसी ने कहा कि भगवान राम नाराज़ होंगे इसलिए नही दिखे। हा हा हा...जोरदार हंसी फुट पड़ी। जैसे सबने दर्शन किये हों राम के।
     उधर सूरज सरजू (सरयु नदी) के आलिंगन की तैयारी में था। प्रेम में डूबने को लालायित , वो अलौकिक प्राकृतिक छटा की लालिमा ने घसीट लिया वहाँ से विक्षत मन को, थके तन को । सूरज आहिस्ता आहिस्ता वृहद रूप ले रहा था। सरजू की लहरें कभी लाल तो कभी स्याह हो रही थीं। सूरज जैसे ही सरजू में विलीन हुआ। आसमान में तारे चमक उठे। अजोध्या सरजू किनारे आजादी की सांस लेती है। राम इंतज़ार में बैठे हैं।

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चौरासी गुणा = महा गरीब/गरीब/राजा/महाराजा

चौरासी कोसी, चौरासी लाख देवी देवता, चौरासी गुणा...चौरासी चौरासी । चौरासी का महत्व तब समझ में आता है जब अजोध्या में पंडा पिंड दान करते वक़्त दक्षिणा को 84 से गुणा कर देता है। यजमान की दक्षिणा के आधार पर पुण्य और पाप दोनों ही 84 गुना होने की संभावना रहती है। पितरों के पिंड दान के समय पढ़े जाने वाले श्लोकों के बीच में ही दक्षिणा का संकल्प पंडा बड़ी चतुराई से करवा लेता है। संकल्प के दौरान पिंड दान करते हुए यजमान को महाराजा की तरह पिंड दान करने का संकल्प करवाया जाता है। पिंड दान की आखरी कड़ी में पंडा दक्षिणा रखने की बात करता है। फिर यजमान की स्वीकृति अस्वीकृति के बाद उसे महाराजा/राजा/गरीब/महागरीब घोषित करके पुण्य और पाप के 84 गुने हो जाने की हिदायत देता है। इस क्रिया क्रम में अंत खटास से ही होता है। या तो पंडा नाराज़ होगा, या यजमान का नाराज़ होना तय है। पितरे तो दोनों को ही देख के तर जाते होंगे कि अच्छा हुआ वो यहां से निकल गए। अब चौरासी का खेल देखिये, दक्षिणा 51 रुपये गुणे 84 = 4284 रुपये = महाराजा, दक्षिणा 21 रुपये गुणे 84 = 1764 रुपये=राजा, दक्षिणा 11 रुपये गुणा 84 =924 रुपये= गरीब, दक्षिणा 5 रुपये गुणा 84 = 420 रुपये = महागरीब। ये भी हो सकता है कि दक्षिणा को पितरों की संख्या के साथ गुणा कर दिया जाए। घर के जितने लोगों का पिंड दान उतने गुने दक्षिणा। और गो दान की दक्षिणा अलग से। जो कि इस पैकेज में शामिल नही होता।

तस्वीर - एक पंडा जजमान को 84 का गुणांक समझाता हुआ, मामला महागरीब से भी नीचे चला गया। जजमान 151 ही दे पाया।

राम के अयोध्या से पहली मुलाकात

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