रूह को कभी महसूस किया है ?
मैंने कभी नहीं सोचा था, अनजाने में हो गया .....
अनजाने में ? अन जाने में, या जानने
को ख़ारिज करते हुए अनजाने और जानने के बीच के अंतर को बनाये रखने की सोची समझी
कोशिश? .
नहीं नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है. मैं जानता हूँ की ऐसा कुछ जानबूझ कर नहीं हुआ....
अब जो जानबूझ कर हुआ हो या न हुआ हो, हुआ है तो बस हुआ है... होने और न होने
के बीच जो कुछ हुआ उसे सूंघ पाना ही महत्वपूर्ण है बाकी सब कोरी बातें हैं... यह
कोई कानूनी अखाड़ा नहीं है जहां सजायाफ्ता कैदी के अच्छे आचरण के बाद उसे जिंदगी
में प्रवेश उसी तरह से मिल जाए जिसे उसके सजा काटने के पहले जिया हो.. यहाँ समय ही
नहीं कीमत चुकानी पड़ती है कीमत की शक्ल कुछ भी हो सकती है हां कुछ भी.. तुम्हे कोई
हक नहीं है किसी को बहकाने का, उकसाने का, जिंदगी के प्रति उम्मीद जगाने का..और
उम्मीदों के भरे आसमान को मुट्ठी में कैद करने की इजाजत किसने दी तुम्हे...तुम
मसीहा नहीं हो...तुम शायद भूल गए थे की वह कोई अप्सरा सी सुनहली काया नहीं थी वह प्रेम से बनी, प्रेम के मरुथल में
मरीचिका की तरह प्रेम में विलय हो जाना चाहती थी...जिस प्रेम को महसूस करके तुमने
उसकी उम्मीदों को जगाया था उस प्रेम से डर गए तुम..सहन नहीं कर पाए तुम..तुमने उसे
अपना तो बनाया लेकिन उसे तुम्हारे प्रेम में आजाद नहीं रहने दिया. तुमने उसका नहीं
उसके प्रेम का गला घोंटा है.तुमने प्रेम को मारा है. तुम हत्यारे हो उम्मीदों के,
तुम हत्यारे हो ख्वाहिशों के..और कहते की तुमने जानबूझ के नहीं किया है . महसूस
करो उसके प्रेम को...महसूस करो उसकी तड़प को जब तुमने उससे कहा था की तुम क्या
चाहती हो...
जिस्म सौ बार जले फिर वही मिटटी का धेला है
रूह एक बार जले तो कुंदन होगी
रूह देखि है कभी ? रूह को महसूस किया है ?
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